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दुनिया पत्थर फेंक रही है झुँझला कर फ़र्ज़ानों पर | शाही शायरी
duniya patthar phenk rahi hai jhunjhla kar farzanon par

ग़ज़ल

दुनिया पत्थर फेंक रही है झुँझला कर फ़र्ज़ानों पर

डी. राज कँवल

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दुनिया पत्थर फेंक रही है झुँझला कर फ़र्ज़ानों पर
अब वो क्या इल्ज़ाम धरेगी हम जैसे दीवानों पर

दिल की कलियाँ अफ़्सुर्दा सी हर चेहरा मायूस मगर
बाग़ महकते देख रहा हूँ घाटों पर शमशानों पर

पत्थर दिल हैं लोग यहाँ के ये पत्थर क्या पिघलेंगे
किस ने बारिश होते देखी तपते रेगिस्तानों पर

जिन की एक नज़र के बदले हम ने दुनिया ठुकरा दी
नाम हमारा सुन कर रक्खें हाथ वो अपने कानों पर

आहें आँसू पेश किए तो घबरा के मुँह फेर लिया
उन को शायद ग़ुस्सा आया मेरे इन नज़रानों पर

क्या तक़दीर का शिकवा यारो अपनी अपनी क़िस्मत है
अपना हाथ गया है अक्सर टूटे से पैमानों पर

आज 'कँवल' हम कुछ भी कह लें बात मगर ये सच्ची है
आज का इक इक पल भारी है पिछले कई ज़बानों पर