दुनिया में इबादत को तिरी आए हुए हैं
पर हुस्न-ए-बुताँ देख के घबराए हुए हैं
अफ़्सोस इबादत न तिरी हो सकी हम से
गर्दन नहीं उठती है कि शरमाए हुए हैं
इल्ज़ाम नहीं तूर जो सुर्मा हुआ जल कर
मूसा भी तजल्ली से तो शरमाए हुए हैं
मैं बरहमन ओ शैख़ की तकरार से समझा
पाया नहीं उस यार को झुँझलाए हुए हैं
काबे से न रग़बत हमें ने दैर की ख़्वाहिश
हम ख़ाना-ए-दिल में जो उसे पाए हुए हैं
है कौन सी जा हो जो तिरे जल्वे से ख़ाली
मज़मून हम अब दिल में यही लाए हुए हैं
ज़िल्लत के ख़रीदार हुए हिर्स के बंदे
हाजत के लिए हाथ जो फैलाए हुए हैं
जिस क़ौम में देखा तो तजस्सुस तिरा पाया
मअ'बद तिरे हर क़ौम में ठहराए हुए हैं
'बहराम' ग़ज़ल और भी इक उन को सुना दे
मुश्ताक़ तिरी बज़्म में सब आए हुए हैं
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ग़ज़ल
दुनिया में इबादत को तिरी आए हुए हैं
बहराम जी