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दुख दे या रुस्वाई दे | शाही शायरी
dukh de ya ruswai de

ग़ज़ल

दुख दे या रुस्वाई दे

सलीम अहमद

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दुख दे या रुस्वाई दे
ग़म को मिरे गहराई दे

अपने लम्स को ज़िंदा कर
हाथों को बीनाई दे

मुझ से कोई ऐसी बात
बिन बोले जो सुनाई दे

जितना आँख से कम देखूँ
उतनी दूर दिखाई दे

इस शिद्दत से ज़ाहिर हो
अँधों को भी सुझाई दे

उफ़ुक़ उफ़ुक़ घर आँगन है
आँगन पार रसाई दे