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दुआ ने काम किया है यक़ीं नहीं आता | शाही शायरी
dua ne kaam kiya hai yaqin nahin aata

ग़ज़ल

दुआ ने काम किया है यक़ीं नहीं आता

राज कुमार क़ैस

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दुआ ने काम किया है यक़ीं नहीं आता
वो मेरे पास खड़ा है यक़ीं नहीं आता

मैं जिस मक़ाम पर आ कर रुका हूँ शाम ढले
वहीं पे वो भी रुका है यक़ीं नहीं आता

वो जिस की आँख में दोनों जहाँ दिखाई पड़ें
वो मुझ को देख रहा है यक़ीं नहीं आता

जिसे सनम कभी समझा कभी ख़ुदा जाना
वो ऐसा होश-रुबा है यक़ीं नहीं आता

जो सोज़ बन के समाया था मेरे शेरों में
वो साज़ बन के उठा है यक़ीं नहीं आता

शगुफ़्ता चेहरा और इस पर तपाँ तपाँ आरिज़
कोई अनार छुटा है यक़ीं नहीं आता

ज़हे नसीब कि लौ दे उठी है तारीकी
सुकूत बोल पड़ा है यक़ीं नहीं आता

हरीम-ए-नाज़ को देखो कि आज पहली बार
दर-ए-नियाज़ खुला है यक़ीं नहीं आता

ये कैसे पिछले दिनों चुप सी लग गई थी जिसे
फिर आज नग़्मा-सरा है यक़ीं नहीं आता