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दोस्तों से तो किनारा भी नहीं कर सकता | शाही शायरी
doston se to kinara bhi nahin kar sakta

ग़ज़ल

दोस्तों से तो किनारा भी नहीं कर सकता

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

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दोस्तों से तो किनारा भी नहीं कर सकता
उन का हर ज़ुल्म गवारा भी नहीं कर सकता

मेरा दुश्मन मिरे अपनों में छुपा बैठा है
उस की जानिब मैं इशारा भी नहीं कर सकता

शब में निकलेगा नहीं उस पे मुसल्लत है निज़ाम
दिन में सूरज का नज़ारा भी नहीं कर सकता

ऐश-ओ-इशरत का तलबगार नहीं हूँ फिर भी
तंग-दस्ती में गुज़ारा भी नहीं कर सकता

शौक़ ऐसा कि मचलता है मोहब्बत के लिए
जुर्म ऐसा कि दोबारा भी नहीं कर सकता

ग़म है बेताब कि आँखों से निकल जाए मगर
दिल की दौलत का ख़सारा भी नहीं कर सकता