दोस्तों की बज़्म में साग़र उठाए जाएँगे
चाँदनी रातों के क़िस्से फिर सुनाए जाएँगे
आज मक़्तल में लगा है सर-फिरों का इक हुजूम
फिर किसी क़ातिल के जौहर आज़माए जाएँगे
ज़िक्र फिर गुज़रे ज़मानों का वहाँ छिड़ जाएगा
वक़्त के चेहरे से फिर पर्दे उठाए जाएँगे
चल पड़ेगा फिर बयाँ इक चाँद से रुख़्सार का
याद फिर ज़ुल्फ़ों के पेच-ओ-ख़म दिलाए जाएँगे
बात चल निकलेगी फिर इक़रार की इंकार की
फिर वही बचपन के भूले गीत गाए जाएँगे
याद आएँगे फ़साने यूँ तो सब को बज़्म में
कुछ कहेंगे और कुछ बस मुस्कुराए जाएँगे
जो अँधेरे ढूँढते हैं मुँह छुपाने के लिए
रौशनी के रू-ब-रू इक दिन वो लाए जाएँगे
मौत ने हर बज़्म की सूरत बदल डाली यहाँ
रह गए कुछ यार सो वो भी उठाए जाएँगे
आ चलें 'आज़िम' पुराने दोस्तों के दरमियाँ
याद की बस्ती में फिर कुछ गुल खिलाए जाएँगे
ग़ज़ल
दोस्तों की बज़्म में साग़र उठाए जाएँगे
आज़िम कोहली