दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
इस तरह हैं कूचा-ओ-बाज़ार पर नक़्श-ओ-निगार
हो अयाँ हुस्न-ए-निगारिसताँ की जिन से ख़ूब रे
गर्म-जोशी अपने बा-जाम-ए-चराग़ाँ लुत्फ़ से
क्या ही रौशन कर रही है हर तरफ़ रोग़न की मय
माइल-ए-सैर-ए-चराग़ाँ ख़ल्क़ हर जा दम-ब-दम
हासिल-ए-नज़्ज़ारा हुस्न-ए-शम्अ-रू याँ पय-ब-पय
आशिक़ाँ कहते हैं माशूक़ों से बा-इज्ज़-ओ-नियाज़
है अगर मंज़ूर कुछ लेना तो हाज़िर हैं रूपे
गर मुकर्रर अर्ज़ करते हैं तो कहते हैं वो शोख़
हम से लेते हो मियाँ तकरार-ए-हुज्जत ता-ब-कै
कहते हैं अहल-ए-क़िमार आपस में गर्म-ए-इख़्तिलात
हम तो डब में सौ रूपे रखते हैं तुम रखते हो के
जीत का पड़ता है जिस का दाँव वो कहता हूँ मैं
सू-ए-दस्त-ए-रास्त है मेरे कोई फ़र्ख़न्दा-पय
है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर'
पर दिवाली भी अजब पाकीज़ा-तर त्यौहार है
ग़ज़ल
दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
नज़ीर अकबराबादी