EN اردو
दोस्तो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार ज़रा उस से कहो | शाही शायरी
dosto haal-e-dil-e-zar zara us se kaho

ग़ज़ल

दोस्तो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार ज़रा उस से कहो

किशन कुमार वक़ार

;

दोस्तो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार ज़रा उस से कहो
कम न हो इस में ज़रा बल्कि सिवा उस से कहो

बात गढ़ कर न कोई बहर-ए-ख़ुदा उस से कहो
जितना मैं मुँह से कहूँ मेरा कहा उस से कहो

ये न कहियेगा कि हम ज़ख़्मों पे छिड़केंगे नमक
जिस किसी ने कि न चक्खा हो मज़ा उस से कहो

शाम-ए-अंदोह की शायद कि सहर हो जाए
मिरा दिन रात का ये शोर-ओ-बुका उस से कहो

चश्म-ए-बीमार ने बीमार किया है मुझ को
लब-ए-जाँ-बख़्श करे मेरी दवा उस से कहो

हाथ उठा बैठे न वो क़त्ल से मेरे यारो
ख़ूँ-बहा मैं ने ब-हल अपना किया उस से कहो

इक हसीं पूछता था हाल-ए-वक़ार-ए-ख़स्ता
गो बुरा हो मिरा इतना तो भला उस से कहो