दोस्तो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार ज़रा उस से कहो
कम न हो इस में ज़रा बल्कि सिवा उस से कहो
बात गढ़ कर न कोई बहर-ए-ख़ुदा उस से कहो
जितना मैं मुँह से कहूँ मेरा कहा उस से कहो
ये न कहियेगा कि हम ज़ख़्मों पे छिड़केंगे नमक
जिस किसी ने कि न चक्खा हो मज़ा उस से कहो
शाम-ए-अंदोह की शायद कि सहर हो जाए
मिरा दिन रात का ये शोर-ओ-बुका उस से कहो
चश्म-ए-बीमार ने बीमार किया है मुझ को
लब-ए-जाँ-बख़्श करे मेरी दवा उस से कहो
हाथ उठा बैठे न वो क़त्ल से मेरे यारो
ख़ूँ-बहा मैं ने ब-हल अपना किया उस से कहो
इक हसीं पूछता था हाल-ए-वक़ार-ए-ख़स्ता
गो बुरा हो मिरा इतना तो भला उस से कहो

ग़ज़ल
दोस्तो हाल-ए-दिल-ए-ज़ार ज़रा उस से कहो
किशन कुमार वक़ार