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दोनों-जहाँ को ज़ीनत-ए-दामाँ किए हुए | शाही शायरी
donon-jahan ko zinat-e-daman kiye hue

ग़ज़ल

दोनों-जहाँ को ज़ीनत-ए-दामाँ किए हुए

जाफ़र अब्बास सफ़वी

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दोनों-जहाँ को ज़ीनत-ए-दामाँ किए हुए
बैठा हूँ दिल में आप को मेहमाँ किए हुए

नज़्ज़ारा-ए-जमाल मयस्सर हो किस तरह
आए हैं आप ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए

दीवाने जा रहे हैं तिरी जुस्तुजू में आज
दामन की धज्जियों को गरेबाँ किए हुए

आओ जनाब-ए-शैख़ चलो मय-कदा चलें
अर्सा हुआ है मय-कदा वीराँ किए हुए

किस सम्त जा रहा है किधर ले चला मुझे
कम्बख़्त दिल तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए

'जाफ़र' मैं उन की राह में बैठा हूँ मुद्दतों
दाग़ों से दिल के जश्न-ए-चराग़ाँ किए हुए