दोनों-जहाँ को ज़ीनत-ए-दामाँ किए हुए
बैठा हूँ दिल में आप को मेहमाँ किए हुए
नज़्ज़ारा-ए-जमाल मयस्सर हो किस तरह
आए हैं आप ज़ुल्फ़ परेशाँ किए हुए
दीवाने जा रहे हैं तिरी जुस्तुजू में आज
दामन की धज्जियों को गरेबाँ किए हुए
आओ जनाब-ए-शैख़ चलो मय-कदा चलें
अर्सा हुआ है मय-कदा वीराँ किए हुए
किस सम्त जा रहा है किधर ले चला मुझे
कम्बख़्त दिल तसव्वुर-ए-जानाँ किए हुए
'जाफ़र' मैं उन की राह में बैठा हूँ मुद्दतों
दाग़ों से दिल के जश्न-ए-चराग़ाँ किए हुए
ग़ज़ल
दोनों-जहाँ को ज़ीनत-ए-दामाँ किए हुए
जाफ़र अब्बास सफ़वी