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दोनों हैं उन के हिज्र का हासिल लिए हुए | शाही शायरी
donon hain un ke hijr ka hasil liye hue

ग़ज़ल

दोनों हैं उन के हिज्र का हासिल लिए हुए

क़मर जलालवी

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दोनों हैं उन के हिज्र का हासिल लिए हुए
दिल को है दर्द दर्द को है दिल लिए हुए

देखा ख़ुदा पे छोड़ के कश्ती को नाख़ुदा
जैसे ख़ुद आ गया कोई साहिल लिए हुए

देखो हमारे सब्र की हिम्मत न टूट जाए
तुम रात दिन सताओ मगर दिल लिए हुए

वो शब भी याद है कि मैं पहुँचा था बज़्म में
और तुम उठे थे रौनक़-ए-महफ़िल लिए हुए

अपनी ज़रूरियात हैं अपनी ज़रूरियात
आना पड़ा तुम्हें तलब-ए-दिल लिए हुए

बैठा जो दिल तो चाँद दिखा कर कहा 'क़मर'
वो सामने चराग़ है मंज़िल लिए हुए