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दोनों आलम से वो बेगाना नज़र आता है | शाही शायरी
donon aalam se wo begana nazar aata hai

ग़ज़ल

दोनों आलम से वो बेगाना नज़र आता है

पुरनम इलाहाबादी

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दोनों आलम से वो बेगाना नज़र आता है
जो तिरे इश्क़ में दीवाना नज़र आता है

इश्क़-ए-बुत काबा-ए-दिल में है ख़ुदाया जब से
तेरा घर भी मुझे बुत-ख़ाना नज़र आता है

शोला-ए-इश्क़ में देखे कोई जलना दिल का
शम्अ के भेस में परवाना नज़र आता है

मिस्र का चाँद भी शैदा है अज़ल से उन का
हुस्न का हुस्न भी दीवाना नज़र आता है

बाग़बाँ बाग़ में किस शोख़ की तहरीर है ये
वरक़-ए-गुल पे जो अफ़्साना नज़र आता है

है अजब हुस्न-ए-तसव्वुर तिरे दीवाने का
तेरे जैसा तिरा दीवाना नज़र आता है

उन की मस्त आँख मिरे दिल में है रक़्साँ 'पुरनम'
ख़ूब पैमाने में पैमाना नज़र आता है