EN اردو
दियों से वा'दे वो कर रही थी अजीब रुत थी | शाही शायरी
diyon se wade wo kar rahi thi ajib rut thi

ग़ज़ल

दियों से वा'दे वो कर रही थी अजीब रुत थी

अहमद सज्जाद बाबर

;

दियों से वा'दे वो कर रही थी अजीब रुत थी
हवा चराग़ों से डर रही थी अजीब रुत थी

बड़ी हवेली के गेट आगे दरीदा दामन
ग़रीब लड़की जो मर रही थी अजीब रुत थी

ठिठुरती शब में विदाई सीटी की गूँज सुन कर
ये आँख पानी से भर रही थी अजीब रुत थी

ज़ईफ़ माँ के लिए था मुश्किल कि घर से जाती
उतार गठरी वो धर रही थी अजीब रुत थी

ख़िज़ाँ के मौसम में शाम भी थी उदास 'बाबर'
वो बन के पतझड़ बिखर रही थी अजीब रुत थी