दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए
रात को फिर पा-ए-गुल-रूयाँ पे सर रख दीजिए
देखिए फिर क्या दमकते हैं गुल-अंदामान-ए-शहर
इक ज़रा उन में मोहब्बत का शरर रख दीजिए
आहुवान-ए-शब गुरेज़ाँ हों तो उन की राह में
दाम-ए-दिल रख दीजिए दाम-ए-नज़र रख दीजिए
बुत-परस्ती कीजिए इस शिद्दत-ए-एहसास से
संग में भी जुज़्व-ए-एहसास-ओ-ख़बर रख दीजिए
ज़ोहद अगर जंग-आज़मा हो खींचिए शमशीर-ए-शौक़
हुस्न अगर मद्द-ए-मुक़ाबिल हो सिपर रख दीजिए
राहत-जान-ए-'ज़फ़र' हैं शाहिदान-ए-बे-हुनर
रौंदने को उन के क़दमों में हुनर रख दीजिए
ग़ज़ल
दिन को बहर-ओ-बर का सीना चीर कर रख दीजिए
सिराजुद्दीन ज़फ़र