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दिन के पास कहाँ जो हम रातों में माल बनाते हैं | शाही शायरी
din ke pas kahan jo hum raaton mein mal banate hain

ग़ज़ल

दिन के पास कहाँ जो हम रातों में माल बनाते हैं

शुजा ख़ावर

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दिन के पास कहाँ जो हम रातों में माल बनाते हैं
बद-हालों को ख़्वाब ही शब भर को ख़ुश-हाल बनाते हैं

उस को तसव्वुर तक लाने में आप ही खो जाते हैं हम
ख़ुद ही फँस जाते हैं हम और ख़ुद ही जाल बनाते हैं

अदब के बाज़ारों में इन शेरों की क़ीमत क्या मालूम
हम तो ख़ाली कारी-गर हैं हम तो माल बनाते हैं

माह ओ साल के मालिक लम्हों से भी रहते हैं महरूम
हम को देखो लम्हों से भी माह ओ साल बनाते हैं

हिज्र में सोचा था अब दिल को पक्का कर लेंगे लेकिन
वस्ल के वादे दिल के आहन को सय्याल बनाते हैं