दिलों पे ज़ख़्म लगा के हज़ार गुज़री बहार
गई है छोड़ के इक यादगार गुज़री बहार
मिरे क़रीब जो कोई गुल-ए-बदन महका
तो आई याद कोई ख़ुश-गवार गुज़री बहार
किसी तरह मुझे पागल न कर सकी वर्ना
तिरे बग़ैर भी आई बहार गुज़री बहार
हर एक सर्व-ए-रवाँ पर गुमाँ कि जैसे वही
हो मेरा माज़ी मिरी यादगार गुज़री बहार
मिरे नसीब का नौहा ख़िज़ाँ ये अहद-ए-ख़िज़ाँ
तिरे करम का फ़साना बहार गुज़री बहार
ग़ज़ल
दिलों पे ज़ख़्म लगा के हज़ार गुज़री बहार
अहमद मासूम