EN اردو
दिलों पे छाने लगा धड़कनों की जान हुआ | शाही शायरी
dilon pe chhane laga dhaDkanon ki jaan hua

ग़ज़ल

दिलों पे छाने लगा धड़कनों की जान हुआ

नाशिर नक़वी

;

दिलों पे छाने लगा धड़कनों की जान हुआ
जब एक उम्र गुज़ारी तो मैं जवान हुआ

जो बोलता था तो मुझ से शिकायतें थी बहुत
मैं चुप हुआ तो उसे ख़ौफ़ का गुमान हुआ

सफ़र का हौसला रखता है उड़ भी सकता है
ये और बात परिंदा लहूलुहान हुआ

यही सबब है कि हर दिल में जा के बस्ता है
मकान जिस ने बनाए वो ला-मकान हुआ

कोई तो है जो हिमायत में हक़ की निकला है
ख़ुदा का शुक्र कि कोई तो हम-ज़बान हुआ

चलो कि पहरे उठा दें हम अपने जीने से
ये रोज़ क़िस्तों में मरना अज़ाब-ए-जान हुआ

फ़लक के चाँद-सितारों पे आ गई रौनक़
ज़मीं से किस का सफ़र रू-ए-आसमान हुआ

वो एक प्यारा सा मंज़र है मेरी आँखों में
लड़े खिलौनों पे बच्चे मैं दरमियान हुआ

हिला न पाएँगी मुझ को अब आँधियाँ 'नाशिर'
मैं बोझ सहते हुए पेड़ से चटान हुआ