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दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब | शाही शायरी
dilon mein rahiye jahan ke wale KHuda ke Dhab

ग़ज़ल

दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब

वली उज़लत

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दिलों में रहिए जहाँ के वले ख़ुदा के ढब
कि हो जहाँ पे न ज़ाहिर ये है मिरा मज़हब

मुझे ग़रज़ नहीं जुज़ ये कि यार नाला से
असर जलावे है जूँ दूद-ए-शोला या-रब

कहा मैं रात पतंगों को शम्अ के आगे
गिरो हो आँख में माशूक़ की ये क्या है अदब

तो कहने लागे ऐ 'उज़लत' मिरे से इश्क़ के नईं
नज़र में पास-ए-अदब हम को जलना है मतलब

हमारी राखें जो ले जा सबा सो हो कर सुब्ह
जलें हैं शोला-ए-ख़ुर्शीद पर ये देख तअब

जलसे है राख कहीं इश्क़ का है ये एजाज़
अजब ये कैश है नाम हलाक यहाँ है तरब

कहा मैं तुम कूँ है राहत की सई जलना जल्द
ग़मों से छूटना और शोहरत उस से है मतलब

असर है इश्क़ का तुम से ज़ियादा शम्अ के बीच
कि उम्र उस की कई जलते सो भी जाँ-बर-लब