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दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ | शाही शायरी
dilon mein dard bharta aankh mein gauhar banata hun

ग़ज़ल

दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ

सलीम अहमद

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दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ
जिन्हें माएँ पहनती हैं मैं वो ज़ेवर बनाता हूँ

ग़नीम-ए-वक़्त के हमले का मुझ को ख़ौफ़ रहता है
मैं काग़ज़ के सिपाही काट कर लश्कर बनाता हूँ

पुरानी कश्तियाँ हैं मेरे मल्लाहों की क़िस्मत में
मैं उन के बादबाँ सीता हूँ और लंगर बनाता हूँ

ये धरती मेरी माँ है इस की इज़्ज़त मुझ को प्यारी है
मैं इस के सर छुपाने के लिए चादर बनाता हूँ

ये सोचा है कि अब ख़ाना-बदोशी कर के देखूँगा
कोई आफ़त ही आती है अगर मैं घर बनाता हूँ

हरीफ़ान-ए-फ़ुसूँ-गर मू-क़लम है मेरे हाथों में
यही मेरा असा है इस से मैं अज़दर बनाता हूँ

मिरे ख़्वाबों पे जब तीरा-शबी यलग़ार करती है
मैं किरनें गूँधता हूँ चाँद से पैकर बनाता हूँ