दिलों को रंज ये कैसा है ये ख़ुशी क्या है
ये ज़ुल्मतों से उजालों की हमदमी क्या है
हवाएँ शहर से रोती हुई गुज़रती हैं
दिलों में ख़ौफ़ की ये एक लहर सी क्या है
उदासियों की ये परछाइयाँ सी दूर तलक
मह-ओ-नुजूम की आँखों में ये नमी क्या है
ये खिलखिलाते दर-ओ-बाम में घुटन कैसी
ये जगमगाते मकानों में तीरगी क्या है
भरे जहान में बन-बास की ये कैफ़िय्यत
हर एक सम्त न जाने ये गूँज सी क्या है
तिरे ख़याल में कटती है उम्र फिर भी हम
ये सोचते हैं कि अपनी भी ज़िंदगी क्या है
तमाज़तों में बस इक ख़ुश्क पेड़ की छाँव
है जिस पे नाज़ बहुत वो भी आगही क्या है
ये अश्क अश्क से ख़्वाबों में रौनक़ें कैसी
ये दाग़ दाग़ तमन्ना में ताज़गी क्या है
मिले हैं दुख तो हमें रोज़ ही तिरे दर से
मगर ये आज दुखों में नई ख़ुशी क्या है
ग़ज़ल
दिलों को रंज ये कैसा है ये ख़ुशी क्या है
अहमद हमदानी