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दिल तो पक्का था मगर दिल की दलीलें कच्ची | शाही शायरी
dil to pakka tha magar dil ki dalilen kachchi

ग़ज़ल

दिल तो पक्का था मगर दिल की दलीलें कच्ची

मोहन सीरत अजमेरी

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दिल तो पक्का था मगर दिल की दलीलें कच्ची
ले गिरीं पुख़्ता इमारत को फ़सीलें कच्ची

आ गए रंग के धोके में ज़माने वाले
सुर्ख़ फूलों पे झपटती रहीं चीलें कच्ची

आ गई बात सर-ए-बज़्म ज़बाँ पर दिल की
तू ने होंटों पे जड़ीं ज़ब्त की कीलें कच्ची

कच्चे अंगूर की इक बेल बदन है उस का
और आँखें हैं मय-ए-नाब की झीलें कच्ची

ले उड़े अब्र के टुकड़ों को हवा के झोंके
सूख कर बैठ गईं ख़ाक में झीलें कच्ची

फिर पलट आएँगे 'सीरत' ये जुनूँ के मौसम
धज्जियाँ जेब ओ गरेबान की सी लें कच्ची