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दिल तो है एक मगर दर्द के ख़ाने हैं बहुत | शाही शायरी
dil to hai ek magar dard ke KHane hain bahut

ग़ज़ल

दिल तो है एक मगर दर्द के ख़ाने हैं बहुत

रज़िया फ़सीह अहमद

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दिल तो है एक मगर दर्द के ख़ाने हैं बहुत
इस लिए मुझ को भी रोने के बहाने हैं बहुत

अब नए दोस्त बनाने की तो हिम्मत ही नहीं
दिल से नज़दीक हैं जो दोस्त पुराने हैं बहुत

दिल सुकूँ पाए जहाँ ऐसे बसेरे कितने
यूँ तो कहिए कि मुसाफ़िर को ठिकाने हैं बहुत

दर कभी ख़्वाब का खुलता है अज़ाबों की तरफ़
ये न कहिए कि सभी ख़्वाब सुहाने हैं बहुत

कौन सी बात करें किस से बचाएँ पहलू
जो कभी ख़त्म न हों ऐसे फ़साने हैं बहुत

'रज़िया' क्या काम हमें गंज-ए-गिराँ-माया से
हम से लोगों के लिए शेर-ख़ज़ाने हैं बहुत