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दिल तलबगार सही हश्र-ब-दामाँ क्यूँ है | शाही शायरी
dil talabgar sahi hashr-ba-daman kyun hai

ग़ज़ल

दिल तलबगार सही हश्र-ब-दामाँ क्यूँ है

साजिदा ज़ैदी

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दिल तलबगार सही हश्र-ब-दामाँ क्यूँ है
नाला-ज़न शो'ला-ब-कफ़ शौक़-ए-फ़रावाँ क्यूँ है

महफ़िल-ए-साज़-ओ-तरब मतला-ए-वीराँ क्यूँ है
शेवा-ए-सब्र-ओ-सुकूँ दिल से गुरेज़ाँ क्यूँ है

खींच लाया था जो उस दिल को तिरी महफ़िल में
वही अंदाज़-ए-नज़र आज पशेमाँ क्यूँ है

सुरंगों राह में हर-गाम हुआ जाता है
मुज़्महिल ख़ू-ए-सफ़र दर्द पशेमाँ क्यूँ है

तल्ख़ी-ए-काम-ओ-दहन कश्मकश-ए-ज़ेहन-ओ-वजूद
एक हस्ती के लिए ये सर-ओ-सामाँ क्यूँ है

दश्त-पैमाई में भी वहशत-ए-जाँ इतनी न थी
तिश्नगी साहिल-ए-दरिया पे हिरासाँ क्यूँ है