EN اردو
दिल-सितानी दिलरुबाई पर घमंड | शाही शायरी
dil-sitani dilrubai par ghamanD

ग़ज़ल

दिल-सितानी दिलरुबाई पर घमंड

नूह नारवी

;

दिल-सितानी दिलरुबाई पर घमंड
आप को है ख़ुश-अदाई पर घमंड

जानता हूँ उस का निभना है मुहाल
क्या करूँ मैं पारसाई पर घमंड

नाज़ है क़ातिल को अपनी तेग़ पर
तेग़ को है कज-अदाई पर घमंड

रहम उन को हाल-ए-ग़म पर आ गया
दिल करे बे-दस्त-ओ-पाई पर घमंड

आसियों को रहमत-ए-हक़ पर ग़ुरूर
ज़ाहिदों को जब्हा-साई पर घमंड

गुफ़्तुगू भी मुझ से तुम करते नहीं
इस क़दर इस ख़ुश-अदाई पर घमंड

पर्दा-ए-दर पर किसी को नाज़ है
हम को नज़रों की रसाई पर घमंड

अब उन्हें है दिल-नवाज़ी का ख़याल
था जिन्हें तेग़-आज़माई पर घमंड

फिर गिरफ़्तार-ए-क़फ़स हो जाऊँगा
है अबस मुझ को रिहाई पर घमंड

हो गया जिस के सबब से मैं असीर
था मुझे उस ख़ुश-नवाई पर घमंड

ग़र्क़ कर देगा उन्हें तूफ़ान-ए-इश्क़
'नूह' को है ना-ख़ुदाई पर घमंड