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दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ | शाही शायरी
dil shahid-e-rah-e-daman na hua tha so hua

ग़ज़ल

दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ

हैदर अली आतिश

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दिल शहीद-ए-रह-ए-दामान न हुआ था सो हुआ
टुकड़े टुकड़े जो गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

बर्क़ बे-नूर है उस रुख़ की चमक के आगे
आलम-ए-नूर का इंसाँ न हुआ था सो हुआ

रोने पर मेरे हुआ हँस के वो गुल शर्मिंदा
ग़ुंचा साँ सर-ब-गरेबाँ न हुआ था सो हुआ

मैं ने रंगीं न किया उस का तड़प कर दामन
सर-ए-जल्लाद पे एहसाँ न हुआ था सो हुआ

हो गया देख के क़ाज़ी भी तरफ़-दार उस का
बे-गुनह ख़ून-ए-मुसलमाँ न हुआ था सो हुआ

हर ज़बाँ पर मिरी रुस्वाई का अफ़्साना है
नुस्ख़ा-ए-शौक़ परेशाँ न हुआ था सो हुआ

अरक़-आलूदा जबीं देख कै दिल डूब गया
शबनम-ए-बाग़ से तूफ़ाँ न हुआ था सो हुआ

क़त्ल कर के मुझे तलवार को तोड़ा उस ने
ख़ून-ए-नाहक़ से पशेमाँ न हुआ था सो हुआ

यार के रू-ए-किताबी की करूँ क्या तारीफ़
ब'अद क़ुरआँ के जो क़ुरआँ न हुआ था सो हुआ

आँसू आँखों से निकलता है सो चिंगारी है
पर्दा-ए-दिल से नुमायाँ न हुआ था सो हुआ

आतिश-ए-इश्क़ से है दाग़ सरापा मेरा
आदमी सर्व-ए-चराग़ाँ न हुआ था सो हुआ

गर्द-ए-रह बन के हुआ संदल-ए-पेशानी-ए-यार
ज़र्रा ख़ुर्शीद-ए-दरख़्शाँ न हुआ था सो हुआ

पहरों ही मिस्रा-ए-सौदा है रुलाता 'आतिश'
तुझे ऐ दीदा-ए-गिर्यां न हुआ था सो हुआ