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दिल पर इस काकुल-ए-रसा की चोट | शाही शायरी
dil par is kakul-e-rasa ki choT

ग़ज़ल

दिल पर इस काकुल-ए-रसा की चोट

जलील मानिकपूरी

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दिल पर इस काकुल-ए-रसा की चोट
क़हर की चोट है बला की चोट

हैं वो अफ़्सुर्दा मेरी आहों से
फूल को है बहुत हवा की चोट

निगह-ए-नाज़ से ख़ुदा की पनाह
क्या बचाए कोई क़ज़ा की चोट

आफ़रीं दिल को जो उठाता है
दम-ब-दम ख़ंजर-ए-अदा की चोट

गिर पड़ी आसमान से बिजली
हँस के क़ातिल ने की बला की चोट

बन गई ख़ून दस्त-ए-क़ातिल में
रंग लाई दिल-ए-हिना की चोट

तीर-ए-मिज़्गाँ चले जुदा दिल पर
ग़म्ज़ा-ए-यार ने जुदा की चोट

बाग़ में सब बिकस गईं कलियाँ
न उठी दामन-ए-सबा की चोट

दिल ये कहता है कुछ ख़ता कर के
खाइए दस्त-ए-दिल-रुबा की चोट

हो गया माह-ए-चर्ख़ दो टुकड़े
थी ये अंगुश्त-ए-मुस्तफ़ा की चोट

ग़ैर क्या समझे दर्द-ए-दिल को 'जलील'
आश्ना जाने आश्ना की चोट