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दिल-ओ-निगाह के हुस्न-ओ-क़रार का मौसम | शाही शायरी
dil-o-nigah ke husn-o-qarar ka mausam

ग़ज़ल

दिल-ओ-निगाह के हुस्न-ओ-क़रार का मौसम

शाज़िया अकबर

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दिल-ओ-निगाह के हुस्न-ओ-क़रार का मौसम
वो तेरी याद तिरे इंतिज़ार का मौसम

झुकी है आँख कई रत-जगे समेटे हुए
छुपा है लम्स में कैसा ख़ुमार का मौसम

हमारे प्यार ने उम्र-ए-दवाम माँगी है
हमें क़ुबूल नहीं था उधार का मौसम

फ़िराक़ लम्हों को हम ने हसीं बनाया है
सजा के दिल में तिरे ए'तिबार का मौसम

मिली निगाह तो इक पल में हम पे गुज़रा है
करोड़ क़ुर्बतों लाखों क़रार का मौसम

हमारे प्यार की ये भी अदा निराली है
ख़िज़ाँ की रुत में मनाया बहार का मौसम