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दिल ने अपनी ज़बाँ का पास किया | शाही शायरी
dil ne apni zaban ka pas kiya

ग़ज़ल

दिल ने अपनी ज़बाँ का पास किया

रसा चुग़ताई

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दिल ने अपनी ज़बाँ का पास किया
आँख ने जाने क्या क़यास किया

क्या कहा बाद-ए-सुब्ह-गाही ने
क्या चराग़ों ने इल्तिमास किया

कुछ अजब तौर ज़िंदगानी की
घर से निकले न घर का पास किया

इश्क़ जी जान से किया हम ने
और बे-ख़ौफ़-ओ-बे-हिरास किया

रात आई उधर सितारों ने
शबनमी पैरहन लिबास किया

साया-ए-गुल तो मैं नहीं जिस ने
गुल को देखा न गुल को बास किया

बाल तो धूप में सफ़ेद किए
ज़र्द किस छाँव में लिबास किया

क्या तिरा ए'तिबार था तू ने
क्या ग़ज़ब शहर-ए-नासपास किया

क्या बताऊँ सबब उदासी का
बे-सबब मैं उसे उदास किया

ज़िंदगी इक किताब है जिस से
जिस ने जितना भी इक़्तिबास किया

जब भी ज़िक्र-ए-ग़ज़ल छिड़ा उस ने
ज़िक्र मेरा ब-तौर-ए-ख़ास किया