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दिल नहीं मिलने का फिर मेरा सितमगर टूट कर | शाही शायरी
dil nahin milne ka phir mera sitamgar TuT kar

ग़ज़ल

दिल नहीं मिलने का फिर मेरा सितमगर टूट कर

फ़रोग़ हैदराबादी

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दिल नहीं मिलने का फिर मेरा सितमगर टूट कर
चीज़ ये ऐसी नहीं जुड़ जाएगी जो फूट कर

आज है दिल में मिरे कल है अदू की आँख में
तुझ में भर दी है ये ऐसी किस ने शोख़ी कूट कर

अपने बेगानों की नज़रें पड़ रही हैं आप पर
वाह क्या नाम-ए-ख़ुदा निकली जवानी फूट कर

उस का दुश्मन से तअल्लुक़ उस का दुश्मन से मिलाप
सुन रहा हूँ आज-कल जो कुछ इलाही छूट कर

अब कहाँ नज़्ज़ारा-ए-गुल अब कहाँ लुत्फ़-ए-चमन
एक आफ़त में पड़े हैं हम क़फ़स से छूट कर

बे-ख़बर सोता है कोई सेज पर आराम से
हिचकियाँ ले ले के कोई रो रहा है फूट कर

दिल न पिघले और किस का दिल मिरा दिल हैफ़ है
नाज़नीं फिर नाज़नीं तुझ सा जो रोए फूट कर

ये न मानेगा न समझाए से समझेगा कभी
तुझ पे दिल आया है मेरा ऐ सितमगर टूट कर

यास-ओ-ग़म रंज-ओ-अलम ने कर लिया है दिल में घर
ऐ ख़ुशी-ए-वस्ल-ए-जानाँ आए दिन भी फूट कर

उफ़ रे ज़ौक़-ए-जुस्तुजू अल्लाह रे शौक़-ए-कू-ए-दोस्त
गर्द-ए-रह पीछे रही जाती है मुझ से छूट कर

ख़ाक उड़ती है दिल-ए-वीराँ में अब रक्खा है क्या
यास सब कुछ ले गई अरमान-ओ-हसरत लूट कर

क्यूँ सताता है 'फ़रोग़'-ए-मुब्तला को इस क़दर
दिल नहीं जुड़ता नहीं जुड़ता सितमगर टूट कर