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दिल मिट गया तो ख़ैर ज़रूरत नहीं रही | शाही शायरी
dil miT gaya to KHair zarurat nahin rahi

ग़ज़ल

दिल मिट गया तो ख़ैर ज़रूरत नहीं रही

नादिर शाहजहाँ पुरी

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दिल मिट गया तो ख़ैर ज़रूरत नहीं रही
हसरत ये रह गई है कि हसरत नहीं रही

ये दिल बदल गया कि ज़माना बदल गया
या तेरी आँख में वो मुरव्वत नहीं रही

तेरी नज़र के साथ बदलता रहा है दिल
दो रोज़ भी तो एक सी हालत नहीं रही

तर-दामनी से हाथ न धो ऐ दिल-ए-हज़ीं
क्या अब ख़ुदा की जोश पे रहमत नहीं रही

देखेगा ख़्वाब में भी न वो सूरत-ए-सुकूँ
जिस को ख़ुदा से चश्म-ए-इनायत नहीं रही

उन की गली नहीं है न उन का हरीम है
जन्नत भी मेरे वास्ते जन्नत नहीं रही

किस शब तड़प तड़प के न काटी तमाम शब
किस रोज़ मेरे घर पे क़यामत नहीं रही

'नादिर' न आए हर्फ़ तुम्हारी ज़बान पर
वो शेर क्या है जिस में फ़साहत नहीं रही