दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने
सो गया था जगा दिया किन ने
मैं कहाँ और ख़याल-ए-बोसा कहाँ
मुँह से मुँह यूँ भिड़ा दिया किन ने
वो मिरे चाहने को क्या जाने
ये संदेसा सुना दिया किन ने
हम भी कुछ देखते समझते थे
सब यकायक छुपा दिया किन ने
वो बुलाए से भागता था और
'दर्द' तुझ तक बुला दिया किन ने
ग़ज़ल
दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने
ख़्वाजा मीर 'दर्द'