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दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने | शाही शायरी
dil mera phir dukha diya kin ne

ग़ज़ल

दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने

ख़्वाजा मीर 'दर्द'

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दिल मिरा फिर दुखा दिया किन ने
सो गया था जगा दिया किन ने

मैं कहाँ और ख़याल-ए-बोसा कहाँ
मुँह से मुँह यूँ भिड़ा दिया किन ने

वो मिरे चाहने को क्या जाने
ये संदेसा सुना दिया किन ने

हम भी कुछ देखते समझते थे
सब यकायक छुपा दिया किन ने

वो बुलाए से भागता था और
'दर्द' तुझ तक बुला दिया किन ने