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दिल में उस शोख़ के जो राह न की | शाही शायरी
dil mein us shoKH ke jo rah na ki

ग़ज़ल

दिल में उस शोख़ के जो राह न की

मोमिन ख़ाँ मोमिन

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दिल में उस शोख़ के जो राह न की
हम ने भी जान दी पर आह न की

पर्दा-पोशी ज़रूर थी ऐ चर्ख़
क्यूँ शब-ए-बुल-हवस सियाह न की

तिश्ना-लब ऐसे हम गिरे मय पर
कि कभी सैर-ए-ईद-गाह न की

उस को दुश्मन से क्या बचिए वो चर्ख़
जिस ने तदबीर-ए-ख़सफ़-ए-माह न की

कौन ऐसा कि उस से पूछे क्यूँ
पुर्सिश-ए-हाल दाद-ख़्वाह न की

था बहुत शौक़-ए-वस्ल तू ने तो
कमी ऐ हुस्न ता-ब-गाह न की

इश्क़ में काम कुछ नहीं आता
गर न की हिर्स-ओ-माल-ओ-जाह न की

ताब-ए-कम-ज़र्फ़ को कहाँ तुम ने
दुश्मनी की अदू से चाह न की

मैं भी कुछ ख़ुश नहीं वफ़ा कर के
तुम ने अच्छा किया निबाह न की

मोहतसिब ये सितम ग़रीबों पर
कभी तंबीह-ए-बादशाह न की

गिर्या-ओ-आह बे-असर दोनों
किस ने कश्ती मिरी तबाह न की

था मुक़द्दर मैं उस से कम मिलना
क्यूँ मुलाक़ात गाह गाह न की

देख दुश्मन को उठ गया बे-दीद
मेरे अहवाल पर निगाह न की

'मोमिन' इस ज़ेहन-ए-बे-ख़ता पर हैफ़
फ़िक्र आमार्ज़िश-ए-गुनाह न की