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दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश | शाही शायरी
dil mein rahta hai koi dil hi ki KHatir KHamosh

ग़ज़ल

दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

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दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश
जैसे तस्वीर में बैठा हो मुसव्विर ख़ामोश

दिल की ख़ामोशी से घबरा के उठाता हूँ नज़र
एक आवाज़ सी आती है मुसाफ़िर ख़ामोश

इस तआरुफ़ का न आग़ाज़ न अंजाम कोई
कर दिया एक ख़मोशी ने मुझे फिर ख़ामोश

कुछ न सुन कर भी तो कहना है कि हाँ सुनते हैं
कुछ न कह कर भी तो होना है बिल-आख़िर ख़ामोश

डूब सकती है ये कश्ती तिरी सरगोशी से
ऐ मिरे ख़्वाब मिरे हामी-ओ-नासिर ख़ामोश

च्यूंटियाँ रेंग रही हैं कहीं अंदर 'आदिल'
हम हैं दीवार के मानिंद ब-ज़ाहिर ख़ामोश