दिल में जो बात है बताते नहीं
दूर तक हम कहीं भी जाते नहीं
अक्स कुछ देर तक नहीं रुकते
बोझ ये आइने उठाते नहीं
ये नसीहत भी लोग करने लगे
इस तरह मुफ़्त दिल गँवाते नहीं
दूर बस्ती पे है धुआँ कब से
क्या जला है जिसे बुझाते नहीं
छोड़ देते हैं इक शरर बेनाम
आग लग जाती है लगाते नहीं
भूल जाना भी अब नहीं आसाँ
वर्ना ये ख़िफ़्फ़तें उठाते नहीं
आप अपने में जलते बुझते हैं
ये तमाशा कहीं दिखाते नहीं
ग़ज़ल
दिल में जो बात है बताते नहीं
अब्दुल हमीद