दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
जूँ अश्क फिर ज़मीं से उठाया न जाएगा
रुख़्सत है बाग़बाँ कि तनिक देख लें चमन
जाते हैं वाँ जहाँ से फिर आया न जाएगा
काबा डहा तो ग़म न कर ऐ शैख़-ए-बुत-शिकन
दिल बरहमन का है कि बनाया न जाएगा
आने से फ़ौज-ए-ख़त के न हो दिल को मुख़्लिसी
बंधुआ है ज़ुल्फ़ का ये छुटाया न जाएगा
पहुँचेंगे उस चमन में न हम दाद को कभू
जूँ गुल ये चाक-ए-जेब सिलाया न जाएगा
तेग़-ए-जफ़ा-ए-यार से दिल सर न फेरियो
फिर मुँह वफ़ा को हम से दिखाया न जाएगा
आवेगा वो चमन में न ऐ अब्र जब तलक
पानी गुलों के मुँह में चुवाया न जाएगा
अम्मामे को उतार के पढ़ियो नमाज़ शैख़
सज्दे से वर्ना सर को उठाया न जाएगा
ज़ाहिद गिले से मस्तों के बाज़ आने का नहीं
ता मय-कदे में ला के छकाया न जाएगा
ज़ालिम न मैं कहा था कि इस ख़ूँ से दरगुज़र
'सौदा' का क़त्ल है ये छुपाया न जाएगा
दामान-ओ-दाग़-ए-तेग़ को धोया तो क्या हुआ
आलम के दिल से दाग़ धुलाया न जाएगा
ग़ज़ल
दिल मत टपक नज़र से कि पाया न जाएगा
मोहम्मद रफ़ी सौदा