दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है
चश्म का काम अश्क-बारी है
शब-ए-फ़ुर्क़त में मोनिस ओ हमदम
बे-क़रारों कूँ आह-ओ-ज़ारी है
ऐ अज़ीज़ाँ मुझे नहीं बर्दाश्त
संग-दिल का फ़िराक़ भारी है
फ़ैज़ सूँ तुझ फ़िराक़ के साजन
चश्म-ए-गिर्यां का काम जारी है
फ़ौक़ियत ले गया हूँ बुलबुल सूँ
गरचे मंसब में दो-हज़ारी है
इश्क़-बाज़ों के हक़ में क़ातिल की
हर निगह ख़ंजर ओ कटारी है
आतिश-ए-हिज्र-ए-लाला-रू सूँ 'वली'
दाग़ सीने में यादगारी है
ग़ज़ल
दिल कूँ तुझ बाज बे-क़रारी है
वली मोहम्मद वली