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दिल को यकसूई ने दी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की सलाह | शाही शायरी
dil ko yaksui ne di tark-e-talluq ki salah

ग़ज़ल

दिल को यकसूई ने दी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की सलाह

साहिर देहल्वी

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दिल को यकसूई ने दी तर्क-ए-तअ'ल्लुक़ की सलाह
ऐ उमीदे-ए-वस्ल-ए-जानाँ क्या है अब तेरी सलाह

जब जफ़ा-जू ने तग़ाफ़ुल से भी की क़त-ए-नज़र
हो रज़ा-ए-यार पर शाकिर ये है दिल की सलाह

होश में जल्वा दिखाने से अगर है उस को आर
है विदा-ए-होश की हर हाल में अपनी सलाह

नक़्द-ए-जाँ दिलदार करता है तलब मैं क्या करूँ
बंदगी बेचारगी पर अब तो है मेरी सलाह

मंज़िल-ए-इश्क़-ओ-फ़ना करनी है तय सर-ता-ब-सर
शम्अ' के मानिंद जल बुझने की है मेरी सलाह

साफ़ कहता है कि तू नेकी कर और दरिया में डाल
दिल मिरा देता है मुझ को आज नेकी की सलाह

बे तमन्नाई में 'साहिर' मैं हूँ हर-दम मेरे साथ
दूर कर दिल से तमन्ना है ये जानाँ की सलाह