दिल को समझाओ ज़रा इश्क़ में क्या रक्खा है
किस लिए आप को दीवाना बना रक्खा है
ये तो मालूम है बीमार में क्या रक्खा है
तेरे मिलने की तमन्ना ने जिला रक्खा है
कौन सा बादा-कश ऐसा है कि जिस की ख़ातिर
जाम पहले ही से साक़ी ने उठा रक्खा है
अपने ही हाल में रहने दे मुझे ऐ हमदम
तेरी बातों ने मिरा ध्यान बटा रक्खा है
आतिश-ए-इश्क़ से अल्लाह बचाए सब को
इसी शोले ने ज़माने को जला रक्खा है
मैं ने ज़ुल्फ़ों को छुआ हो तो डसें नाग मुझे
बे-ख़ता आप ने इल्ज़ाम लगा रक्खा है
कैसे भूले हुए हैं गब्र ओ मुसलमाँ दोनों
दैर में बुत है न काबे में ख़ुदा रक्खा है
ग़ज़ल
दिल को समझाओ ज़रा इश्क़ में क्या रक्खा है
लाला माधव राम जौहर