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दिल को पैहम वही अंदोह-शुमारी करना | शाही शायरी
dil ko paiham wahi andoh-shumari karna

ग़ज़ल

दिल को पैहम वही अंदोह-शुमारी करना

ख़ुर्शीद रिज़वी

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दिल को पैहम वही अंदोह-शुमारी करना
एक साअत को शब ओ रोज़ पे तारी करना

अब वो आँखें नहीं मिलतीं कि जिन्हें आता था
ख़ाक से दिल जो अटे हों उन्हें जारी करना

मौत की एक अलामत है अगर देखा जाए
रूह का चार अनासिर पे सवारी करना

तू कहाँ मुर्ग़-ए-चमन फ़िक्र-ए-नशेमन में पड़ा
कि तिरा काम तो था नाला-ओ-ज़ारी करना

हूँ मैं वो लाला-ए-सहरा कि हुआ मेरे सुपुर्द
दश्त में पैरवी-ए-बाद-ए-बहारी करना

इस से पहले कि ये सौदा मिरे सर में न रहे
दस्त-ए-क़ातिल को अता ज़रबत-ए-कारी करना

ये जो टपका है ज़बाँ पर सो करम है ये तिरा
अब रग ओ पय में उसे जारी-ओ-सारी करना

बख़्शा लाल-ओ-जवाहिर से सिवा ताब-ए-सुख़न
ख़ाक को अंजुम-ए-अफ़्लाक पे भारी करना