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दिल को जब आगही की आग लगे | शाही शायरी
dil ko jab aagahi ki aag lage

ग़ज़ल

दिल को जब आगही की आग लगे

नासिर शहज़ाद

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दिल को जब आगही की आग लगे
तब सुख़न सोच को सुहाग लगे

इन भरी बस्तियों के लोग मुदाम
इन हरी खेतियों को भाग लगे

मुंतशिर हो तो गुर में ज्ञान कहाँ
सुर मिलें सब तो एक राग लगे

होंट गोरी के रस भरे इंजीर
लट का लच्छा लटक के नाग लगे

कष्ट टूटे तो शाइरी छूटे
आब ठहरे तो जम के झाग लगे

हाथ कंगन को आरसी कैसी
गीत की गत को लय की लाग लगे

नय्या बाँधो नदी किनारे सखी
चाँद बैराग रात त्याग लगे

दिन बिरह के कटें तो पी पलटें
बन में सरसों जगे तो फाग लगे

जोग संजोग के बिनाँ ख़ाली
दूध को भी दही का जाग लगे