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दिल को चश्म-ए-यार ने जब जाम-ए-मय अपना दिया | शाही शायरी
dil ko chashm-e-yar ne jab jam-e-mai apna diya

ग़ज़ल

दिल को चश्म-ए-यार ने जब जाम-ए-मय अपना दिया

नज़ीर अकबराबादी

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दिल को चश्म-ए-यार ने जब जाम-ए-मय अपना दिया
उन से ख़ुश हो कर लिया और कह के बिस्मिल्लाह पिया

देख उस की जामा-ज़ेबी गुल ने अपना पैरहन
इस क़दर फाड़ा कि बुलबुल से नहीं जाता पिया

बे-क़रारी ने निगाह-ए-सीमबर फेरी इधर
की इनायत हम को उस सीमाब ने ये कीमिया

उस के कूचे में जिसे जा बैठने को मिल गई
मसनद-ए-ज़रबाफ़ पर ग़ालिब है उस का बोरिया

दिल छुपा बैठा तो उस ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल से 'नज़ीर'
ऐ असीर-ए-दाम-ए-ना-फ़हमी ये तू ने क्या किया