दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज
देख हो जाऊँगा ग़ैरों के गले का मैं हार
हार फूलों के तू ऐ शोख़-गुल-अंदाम न भेज
भर नज़र सूरत-ए-गुल देख तो लें ऐ बे-दर्द
हाए सय्याद अभी हम को तह-ए-दाम न भेज
जब वो भेजे है मुझे मय तो कहें हैं यूँ ग़ैर
ये बहक जाएगा बस और इसे जाम न भेज
भेजूँ उस पास जो क़ासिद को दोबारा तो कहे
बाज़ आया, नहीं लेने का मैं इनआम न भेज
कूचा-ए-यार में पहुँचे हैं तो बस रहने दे
जीते-जी याँ से कहीं गर्दिश-ए-अय्याम न भेज
दम-ब-दम भेजे है क़ुलियाँ ही को क्या मुँह से लगा
लब से भी लब को मिला बोसा-ब-पैग़ाम न भेज
ब'अद मुद्दत के तुझे पाया है तन्हा ब-ख़ुदा
आज तू काम को याँ से बुत-ए-ख़ुद-काम न भेज
दे कभी बोसा-ए-चश्म-ओ-लब-ए-चजाँ-बख़्श भी जाँ
सिर्फ़ सौग़ात हमें बोसा-ब-पैग़ाम न भेज
गालियाँ तो हैं मोहब्बत की इबारत प्यारे
कब मैं कहता हूँ कि लिख कर मुझे दुश्नाम न भेज
पर ये धड़का है कि जावे न कहीं ख़त पकड़ा
कर के सर-नामे पे तहरीर मिरा नाम न भेज
'जुरअत' अब तुझ से वो रूठा तो मना क्यूँकि मैं लाऊँ
तू ही फिर देने लगेगा मुझे इल्ज़ाम न भेज
ग़ज़ल
दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
जुरअत क़लंदर बख़्श