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दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज | शाही शायरी
dil ko ai ishq su-e-zulf-e-siyah-fam na bhej

ग़ज़ल

दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज

जुरअत क़लंदर बख़्श

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दिल को ऐ इश्क़ सू-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियह-फ़ाम न भेज
रहज़नों में तू मुसाफ़िर को सर-ए-शाम न भेज

देख हो जाऊँगा ग़ैरों के गले का मैं हार
हार फूलों के तू ऐ शोख़-गुल-अंदाम न भेज

भर नज़र सूरत-ए-गुल देख तो लें ऐ बे-दर्द
हाए सय्याद अभी हम को तह-ए-दाम न भेज

जब वो भेजे है मुझे मय तो कहें हैं यूँ ग़ैर
ये बहक जाएगा बस और इसे जाम न भेज

भेजूँ उस पास जो क़ासिद को दोबारा तो कहे
बाज़ आया, नहीं लेने का मैं इनआम न भेज

कूचा-ए-यार में पहुँचे हैं तो बस रहने दे
जीते-जी याँ से कहीं गर्दिश-ए-अय्याम न भेज

दम-ब-दम भेजे है क़ुलियाँ ही को क्या मुँह से लगा
लब से भी लब को मिला बोसा-ब-पैग़ाम न भेज

ब'अद मुद्दत के तुझे पाया है तन्हा ब-ख़ुदा
आज तू काम को याँ से बुत-ए-ख़ुद-काम न भेज

दे कभी बोसा-ए-चश्म-ओ-लब-ए-चजाँ-बख़्श भी जाँ
सिर्फ़ सौग़ात हमें बोसा-ब-पैग़ाम न भेज

गालियाँ तो हैं मोहब्बत की इबारत प्यारे
कब मैं कहता हूँ कि लिख कर मुझे दुश्नाम न भेज

पर ये धड़का है कि जावे न कहीं ख़त पकड़ा
कर के सर-नामे पे तहरीर मिरा नाम न भेज

'जुरअत' अब तुझ से वो रूठा तो मना क्यूँकि मैं लाऊँ
तू ही फिर देने लगेगा मुझे इल्ज़ाम न भेज