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दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ | शाही शायरी
dil ko afsos-e-jawani hai jawani ab kahan

ग़ज़ल

दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ

आग़ा हज्जू शरफ़

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दिल को अफ़सोस-ए-जवानी है जवानी अब कहाँ
कोई दम में चल बसेंगे ज़िंदगानी अब कहाँ

आप उलटते हैं वो पर्दा वो कहानी अब कहाँ
आशिक़ों से गुफ़्तुगू है लन-तरानी अब कहाँ

जब हमारे पास थे उन को हमारा पास था
थी हमारी क़द्र जब थी क़द्र-दानी अब कहाँ

ऐ परी-पैकर तिरा मेरे ही दम तक था बनाव
सुर्ख़ मूबाफ़ ओ लिबास-ए-ज़ाफ़रानी अब कहाँ

बद-मिज़ाजी नौजवानी ने सिखाई है उन्हें
दुश्मन-ए-जाँ हो गए हैं मेहरबानी अब कहाँ

यार आ निकला था ऐ दिल फिर वो क्यूँ आने लगा
हो गया इक ये भी अम्र-ए-ना-गहानी अब कहाँ

ब'अद मेरे फिर किसी ने भी सुनी आवाज़-ए-यार
थी मुझी तक लन-तरानी लन-तरानी अब कहाँ

बाग़ में नहरें भरी हैं फूल फल का था मज़ा
बंद हैं कुंज-ए-क़फ़स में दाना-पानी अब कहाँ

तेरी और अपनी हक़ीक़त जा के ईसा से कहूँ
इस क़दर ताक़त भला ऐ ना-तवानी अब कहाँ

शेफ़्ता जब तक न थे शोहरत थी ज़ब्त-ओ-सब्र की
दर्द-ए-तन्हाई की ताब ऐ यार-ए-जानी अब कहाँ

दिल में ताक़त थी तड़प लेते थे बिस्मिल की तरह
जान में हालत नहीं वो जाँ-फ़िशानी अब कहाँ

घूर लेते थे जफ़ा-कारों को जब मफ़्तूँ न थे
हो गए चौरंग ख़ुद चंगेज़-ख़ानी अब कहाँ

अपनी क़ुदरत उस ने दिखला दी शब-ए-मेराज में
हो चुकी बस मेहमानी मेहमानी अब कहाँ

लहलहाते थे चमन मफ़्तूँ गुलों पर थे बहार
लुट गई बू-बास ऐ बर्ग-ए-ख़िज़ानी अब कहाँ

हाल-ए-दिल क़हवाते थे जब क़ासिद आते जाते थे
नामा-ए-शौक़ और पैग़ाम-ए-ज़बानी अब कहाँ

दाग़-ए-दिल उस ने दिया था दिल को हम ने खो दिया
ऐ 'शरफ़' उस बे-मुरव्वत की निशानी अब कहाँ