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दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ | शाही शायरी
dil ko aazar laga wo ki chhupa bhi na sakun

ग़ज़ल

दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ

ज़हीर देहलवी

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दिल को आज़ार लगा वो कि छुपा भी न सकूँ
पर्दा वो आ के पड़ा है कि उठा भी न सकूँ

मुद्दआ सामने उन के नहीं आता लब तक
बात भी क्या ग़म-ए-दिल है कि सुना भी न सकूँ

बे-जगह आँख लड़ी देखिए क्या होता है
आप जा भी न सकूँ उन को बुला भी न सकूँ

वो दम-ए-नज़अ मिरे बहर-अयादत आए
हाल कब पूछते हैं जब कि सुना भी न सकूँ

ज़िंदगी भी शब-ए-हिज्राँ है कि कटती ही नहीं
मौत है क्या तिरा आना कि बुला भी न सकूँ

दम है आँखों में इसे जान में लाऊँ क्यूँकर
कब वो आए कि उन्हें हाथ लगा भी न सकूँ

शर्म-ए-इस्याँ ने झुकाया मिरी गर्दन को 'ज़हीर'
बोझ वो आ के पड़ा है कि उठा भी न सकूँ