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दिल किसी मुश्ताक़ का ठंडा किया | शाही शायरी
dil kisi mushtaq ka ThanDa kiya

ग़ज़ल

दिल किसी मुश्ताक़ का ठंडा किया

नसीम देहलवी

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दिल किसी मुश्ताक़ का ठंडा किया
ख़ूब किया आप ने अच्छा किया

आज हया आँख की कुछ और है
चाहने वाला कोई पैदा किया

हाए रे पैमाँ-शिकनी के मज़े
जब मैं गया वादा-ए-फ़र्दा किया

कुछ तो किसी ने उन्हें समझा दिया
हम जो गए आज तो पर्दा किया

गो कि न था मेरी तरफ़ मुँह मगर
तिरछी निगाहों से वो देखा किया

आह की तक़्सीर नहीं है मगर
बे-असरी ने मुझे रुस्वा किया

कह के ले आते हैं तुम्हें होशियार
ये न किया हम ने तो फिर क्या किया

मौत के सदक़े कि ये कहते थे वो
आज न उस ने कोई फेरा किया

आप के एहसान की तारीफ़ है
मैं ने अगर शिकवा-ए-आ'दा किया

नाम मेरा सुनते ही शर्मा गए
तुम ने तो ख़ुद आप को रुस्वा किया

क़द्र मिरी तुम ने न की वर्ना मैं
क्या कहूँ क्या आप को समझा किया

मैं ने तो ऐ जान-ए-जहाँ जान दी
तुम ने अदा हक़्क़-ए-वफ़ा क्या किया

फिर वो नहाए अरक़-ए-शर्म में
किस ने मिरे इश्क़ का चर्चा किया

मैं दिल-ए-सद-चाक का कहता था हाल
शाना अबस ज़ुल्फ़ से उलझा किया

उस की नज़र में हुआ हल्का 'नसीम'
मुझ से मिरे शौक़ ने क्या क्या किया