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दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे | शाही शायरी
dil ki taraf nigah-e-taghaful raha kare

ग़ज़ल

दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे

हसन अख्तर जलील

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दिल की तरफ़ निगाह-ए-तग़ाफ़ुल रहा करे
इस ख़ाक-ए-राह को भी कोई कीमिया करे

हीरे की कान देख के आता है ये ख़याल
काश इस ज़मीं से दाना-ए-गंदुम उगा करे

टूटे किसी तरह तो धुएँ का सियह तिलिस्म
हर शाम इस दयार में आँधी चला करे

धीमे दुखों की राख बदन पर मिली तो है
वो डाल दे नज़र तो मुझे आइना करे

ख़ुश्बू मिरे ग़मों की बिखर जाए दूर दूर
यूँ चुप रहूँ कि एक ज़माना सुना करे

बुझने लगी है शाम के आँगन में रौशनी
अब मौज-ए-ख़ून-ए-दिल ही कोई मो'जिज़ा करे