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दिल की सब उलझनों का हल लिक्खूँ | शाही शायरी
dil ki sab uljhanon ka hal likkhun

ग़ज़ल

दिल की सब उलझनों का हल लिक्खूँ

रमज़ान अली सहर

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दिल की सब उलझनों का हल लिक्खूँ
इक महकती हुई ग़ज़ल लिक्खूँ

उस की आसानियों पे जाँ दे दूँ
अपनी मुश्किल को भी सरल लिक्खूँ

जबकि तदबीर में कमी न करूँ
फिर भी तक़दीर को अटल लिक्खूँ

बात मैं एक बे-मिसाल कहूँ
शे'र मैं कोई बे-बदल लिक्खूँ

मेरी कुटिया की बात क्या है 'सहर'
तेरे छप्पर को भी महल लिक्खूँ