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दिल की पर्वाज़ है ला-मकाँ तक | शाही शायरी
dil ki parwaz hai la-makan tak

ग़ज़ल

दिल की पर्वाज़ है ला-मकाँ तक

अब्दुल मन्नान तरज़ी

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दिल की पर्वाज़ है ला-मकाँ तक
अक़्ल की जस्त है आसमाँ तक

बर्क़ तड़पी तो आई कहाँ तक
आशियाँ बस मिरे आशियाँ तक

दर्द का सिलसिला है जहाँ तक
दिल की जागीर होगी वहाँ तक

लोग कहते हैं अब रह गया है
तेरा क़िस्सा मिरी दास्ताँ तक

आप रस्मन ही क्यूँ मुस्कुराए
देखिए बात फैली कहाँ तक

शौक़ के मरहले भी हैं सारे
सिर्फ़ एहसास-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ तक

हम तो हद्द-ए-यक़ीं से भी गुज़रे
आप क्यूँ रह गए हैं गुमाँ तक

अब जबीं नंग-ए-सज्दा नहीं है
कौन जाए तिरे आस्ताँ तक

मौत आती है तो आए 'तरज़ी'
बात दिल की न आए ज़बाँ तक