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दिल की गली में चाँद निकलता रहता है | शाही शायरी
dil ki gali mein chand nikalta rahta hai

ग़ज़ल

दिल की गली में चाँद निकलता रहता है

अज़हर इक़बाल

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दिल की गली में चाँद निकलता रहता है
एक दिया उम्मीद का जलता रहता है

जैसे जैसे यादों कि लौ बढ़ती है
वैसे वैसे जिस्म पिघलता रहता है

सरगोशी को कान तरसते रहते हैं
सन्नाटा आवाज़ में ढलता रहता है

मंज़र मंज़र जी लो जितना जी पाओ
मौसम पल पल रंग बदलता रहता है

राख हुई जाती है सारी हरियाली
आँखों में जंगल सा जलता रहता है

तुम जो गए तो भूल गए सारी बातें
वैसे दिल में क्या क्या चलता रहता है