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दिल की दुनिया देख कर क्यूँ रंग-ए-दुनिया देखते | शाही शायरी
dil ki duniya dekh kar kyun rang-e-duniya dekhte

ग़ज़ल

दिल की दुनिया देख कर क्यूँ रंग-ए-दुनिया देखते

मख़मूर जालंधरी

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दिल की दुनिया देख कर क्यूँ रंग-ए-दुनिया देखते
देखने वालो नहीं हम देख कर क्या देखते

जल्वा-गाह-ए-दिल में आ जाते वो बे-पर्दा अगर
हम भी रंग-ए-बे-खु़दी हम रंग-ए-मूसा देखते

चौदहवीं का चाँद होता है दरख़्शाँ जिस तरह
यूँ तसव्वुर में किसी को जगमगाता देखते

ग़र्क़ हो जाते मोहब्बत में मोहब्बत-आश्ना
साहिल-ओ-दरिया से भी कर के किनारा देखते

जज़्ब हो कर रह गए ख़ुद ही निगाह-ए-बर्क़ में
क्यूँकर आँखों से नशेमन अपना जलता देखते

मैं कभी जल्वा हूँ तेरा तू कभी परतव मिरा
उम्र गुज़री जा रही है ये तमाशा देखते

होते वो जल्वा-नुमा गुल-पैकर-ओ-गुल-पैरहन
हम उन्हें 'मख़मूर' फ़िरदौस-ए-तमाशा देखते