दिल के वीरान रास्ते भी देख
आँख की मार से परे भी देख
चार सू गूँजते हैं सन्नाटे
कभी सुनसान मक़बरे भी देख
काँपती हैं लवें चराग़ों की
रौशनी को क़रीब से भी देख
सोज़िश-ए-फ़ुर्क़त-ए-मुसलसल से
आँच देते हैं क़हक़हे भी देख
बंद होंटों की नग़्मगी भी सुन
सोती आँखों के रतजगे भी देख
देखना हो अगर कमाल अपना
आईना देख कर मुझे भी देख
ग़ज़ल
दिल के वीरान रास्ते भी देख
अहमद राही