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दिल के वीरान रास्ते भी देख | शाही शायरी
dil ke viran raste bhi dekh

ग़ज़ल

दिल के वीरान रास्ते भी देख

अहमद राही

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दिल के वीरान रास्ते भी देख
आँख की मार से परे भी देख

चार सू गूँजते हैं सन्नाटे
कभी सुनसान मक़बरे भी देख

काँपती हैं लवें चराग़ों की
रौशनी को क़रीब से भी देख

सोज़िश-ए-फ़ुर्क़त-ए-मुसलसल से
आँच देते हैं क़हक़हे भी देख

बंद होंटों की नग़्मगी भी सुन
सोती आँखों के रतजगे भी देख

देखना हो अगर कमाल अपना
आईना देख कर मुझे भी देख